“सफलता पर विजय” की इस अद्भुत यात्रा में आपका स्वागत है| हम एक ऐसी यात्रा पर हैं, जिसमे हम जान रहे हैं कि हम जीवन में कैसे स्वस्थ हों और साथ ही कैसे हमारे सम्बन्ध मधुर हों, बुद्धि तीक्षण हो, ह्रदय प्रेमल हो और चेतना ध्यानस्थ हो, जिससे हम जीवन में एक आनंदमय सफलता, एक नाचती हुई सफलता का अनुभव कर सकें|
अब तक हमने जाना कि बिना आनंद के सफलता अधूरी है और बिना सफलता के आनंद अधूरा है| एक पूर्ण जीवन वही है जिसमें सफलता और आनंद दोनों प्रचुर मात्रा में हैं| इन दोनो को जीवन में हांसिल करने के लिए चेतना की यात्रा, बहार और भीतर, पूर्णतया सहज और सुगम होनी चाहिए| हमने यह भी जाना कि जहाँ पीड़ा है, तनाव है, चिंता है, कष्ट है वहां हमारी चेतना अटक जाती है और फिर न हम जीवन में सफल हो पाते हैं और न ही आनंदित|
पिछले अंक में हमने जाना कि चेतना कि यात्रा में पहला अटकाव हैं “हमारे सम्बन्ध”| हमने जाना कि किन कारणों से हमारे सम्बन्ध खराब होते है और हम क्या करें कि हमारे सम्बन्ध मधुर हों| मैं आशा करता हूँ कि आप अपने जीवन में परिवर्तन लाये होंगे और मुझे विशवास है कि आपके सम्बन्ध मधुर होने शुरू हो गए होंगे|
इस लेख में हम दुसरे अटकाव को समझेंगे| हमारी चेतना की सहज यात्रा में दूसरा अटकाव है “हमारा शरीर”| हम यह जानेंगे कि हम बिमार क्यों होते हैं और स्वस्थ कैसे रह सकते हैं| यदि हमें कोई रोग हो गया है, तो कौन सी चिकित्सा पद्धति से वह ठीक हो सकता है|
अधिकतर लोग स्वस्थ शरीर लेकर पैदा होते हैं| हमारा शरीर प्रकृति की एक ऐसी अनुपम कृति है जिसमें रोगों से लड़ने की अद्भुत सामर्थ है| हमारा शरीर रोगों से लड़ भी सकता है, और यदि किसी कारणवश रोगग्रस्त हो जाए, तो स्वयं ही अपना उपचार भी कर सकता है| उदाहरण के लिए, जब ठंड पड़ती है तो हमारे शरीर में कंपन होनी शुरू हो जाती है और उस कंपन से उर्जा पैदा होती है जिससे हमारा शरीर एक निश्चित तापमान पर आ जाता है| गर्मी के मौसम में शरीर से पसीना निकलना शुरू हो जाता है जिससे शरीर ठंडा होता है और निश्चित तापमान पर आ जाता है| चोट लगने पर जब पस पड़ती है तो वह इन्फेक्शन से बचाती है| रात को जब हम सोते हैं तो जो कोशिकाए (सेल्स) दिन में नष्ट हो जाती हैं उनको शरीर बाहर फैंक देता है और उनकी जगह नई कोशिकाए जन्म ले लेती हैं, भोजन पचता है इत्यादी| अगली सुबह हम फिर तरोताजा होकर उठते हैं|
यह बहुत आश्चर्य की बात है कि फिर भी हम बिमार कैसे हो जाते है?
हम समाज में रह रहे हैं और अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से इस जगत के साथ जुड़े हैं| सुन कर, देख कर, सूंघ कर, स्पर्श करके और स्वाद ले कर हम इस जगत में होने वाली घटनाओं को जान पाते हैं| इन सभी इंद्रियों से एकत्रित की गयी सूचना हमारे चेतन मन में जाती है| हमारे चेतन मन का काम है विचार करना, सही गलत में भेद करना, निर्णय लेना| यह चेतन मन गहरे में हमारे अवचेतन मन से जुड़ा होता है| हमारे अवचेतन मन में भावनाएं जैसे प्रेम, क्रोध, घृणा आदि; हमारे संस्कार, भय, इच्छायें, कामनाएं इत्यादी होती हैं|
तो बाहर की घटनाएं हमारी इन्द्रियों के माध्यम से हमारे चेतन मन में आती हैं; वहां पर हमारी विचार कि प्रक्रीया शुरू हो जाती है; और फिर विचार से भावनायें सक्रिय हो जाती हैं| इन्ही भावनाओं और विचारों के आधार पर हम जगत में व्यवहार करते हैं|
एक उदाहरण से समझते हैं, मान लीजिये दिन में आपकी आपके मित्र से नोक झोंक हो गयी| उसने आपको कुछ बुरा भला कहा दिया| जब आप रात को बिस्तर पर सोने के लिए जायेंगे, तो मन में वही विचार घुमते रहेंगे कि उसने मेरे साथ गलत किया| उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था| इन विचारों से हो सकता है क्रोध की भावना सक्रिय हो जाए| अब क्रोध में आप विचार करेंगे कि मैं उसको दिखा कर रहूँगा कि मैं कौन हूँ| मैं उससे बदला ले कर रहूँगा| हमारे मन को एक चिंता, एक तनाव ने पकड़ लिया|
जैसे ही हमारा मन चिंता, परेशानी या तनाव से ग्रसित होता है तो इसका सीधा असर हमारी सांसों पर आना शुरू हो जाता है| हमारी सांसे तेज चलने लगती है और छोटी हो जाती है| आपने देखा होगा कि एक छोटा बच्चा जब सो रहा होता है तो सांस लेते समय उसकी नाभि ऊपर और नीचे उठती है अर्थात वह लम्बी, धीमी और गहरी सांस ले रहा है| परंतु तनाव की स्थिति में सांस लेते समय हमारी सिर्फ छाती ही ऊपर नीचे होती है, पेट नहीं| अर्थात हमारी सांस तेज, छोटी और उथली होने लगती है|
जैसे ही हमारी सांस प्रभावित होती है, तेज, छोटी और उथली हो जाती है, तो उसका असर हमारी जीवनी-शक्ति पर पड़ना शुरू हो जाता है| यह जीवनी शक्ति साँसों के माध्यम से ही हमारे भीतर आती है | साँसों के अस्त व्यस्त होने से हमारी जीवनी शक्ति में कमी आनी शुरू हो जाती है|
हमारी जीवनी-शक्ति का सीधा प्रभाव हमारे तत्वों पर पड़ना शुरू हो जाता है| हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है –अग्नि, वायु, जल, आकाश और पृथ्वी| जैसे ही हमारी जीवनी शक्ति प्रभावित होती है, हमारे तत्व असंतुलित हो जाते हैं|
पांच तत्व हमारे नीचे के पांच चक्रों के साथ जुड़े है| जैसे ही तत्व असंतुलित होते हैं तो इनका प्रभाव हमारे चक्रों पर पड़ता है|
हर चक्र हमारे शारीर की एक एक ग्रंथी (ग्लैंड) के साथ जुड़ा है| ग्रंथियों का काम है रक्त में सही मात्र में कुछ रसायन मिलाना जो हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं| यदि शारीर में इन रसायनों की मात्रा में असंतुलन आ जाता है तो शारीर में रोग के लक्षण आ जाते हैं| जैसे शारीर का तापमान कम या ज्यादा होना, वजन कम या ज्यादा होना, दर्द, भूख कम या ज्यादा होना, रक्तचाप कम या ज्यादा होना, नींद न आना इत्यादि|
इन लक्षणों को हम बिमारी कहते है| इन बीमारियों के इलाज के लिए हम डॉक्टर से मिलते हैं | डॉक्टर हमें कुछ दवाइयां देते हैं| दवाइयों के द्वारा रसायन हमारे शरीर में जाते हैं और रोग के लक्षण दूर हो जाते हैं| हम स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगते हैं|
दवाइयों के माध्यम से जो रसायन हम शरीर में लेते हैं उनसे स्वस्थ तो जरूर महसूस करते हैं परन्तु उनके दुष्परिणाम भी हमारे शरीर पर आने लगते हैं | फिर उन दुश्परिणामों को दूर करने के लिए हम और दवाइयों का सहारा लेते हैं| आज ३0 – ३५ वर्ष तक आते आते, बहुत से लोगों को दिन में ८ से १0 गोलिया खानी पड़ती हैं|
अब हम अपने उदाहरण पर वापस आते हैं| हमारी मित्र से नोक झोंक हुई, रात को वही विचार हमारे मन में घूमने लगे, मन में क्रोध आया और उससे बदला लेने की भावना सक्रिय होने लगी| तनाव कि स्थिति बन गयी| इससे हमे नींद नहीं आएगी| नींद में, जैसा हमने ऊपर जाना, शरीर का उपचार होता है, भोजन पचता है इत्यादी| अब नींद न आने से भोजन ठीक से नहीं पचेगा| जिसके कारण हमे गैस और एसिडिटी होनी शुरू हो जायेगी| क्रोध में हमारा रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है|
अपने जीवन में देखें तो रोज़ न जाने कितने लोग कितने जख्म देते हैं | और जैसे जैसे उम्र बढती है, तो इतने जख्म इकट्ठे हो जाते हैं कि हमारी आत्मा तक छलनी हो जाती है| परिणामस्वरूप, हम विचारों और नकारात्मक भावनायों (क्रोध, लाचारी, ग्लानी आदि) से घिर जाते हैं, जिससे विभिन्न रोग हमारे शरीर को आ घेरते हैं | आज ज्यादातर लोग नींद न आना, अपच, गैस, एसिडिटी, रक्तचाप आदि बीमारियों से ग्रसित हैं | और रोज़ इनकी दवाइयां लेते हैं|
थोडा विचार करें तो हम समझ सकते हैं कि बिमारी का कारण मन में था, हमारी बदला लेने की भावना, हमारा क्रोध; परन्तु हमनें इलाज किया अपने शरीर का, नींद न आने का, रक्तचाप का, इत्यादि| बिमारी की जड़ तो हमारे मन में वैसी की वैसी ही है| क्या यह ऐसा न हुआ कि हम चाहते तो हैं पेड़ काटना परन्तु रोज पत्ते तोड़ कर प्रसन्न हो जाते हैं कि हमने पेड़ छोटा कर दिया परन्तु जड़ को नहीं काट रहे| और जब हम पत्ते तोड़ते हैं, तो वह कलम करने का काम करता है; यानी अगले दिन और ज्यादा पत्ते निकलेंगे | ऐसा ही हमारे साथ हो रहा है | अगर कल हम ५ गोलिया खाते थे, तो आज ८ खानी पड़ रही हैं और भविष्य में गोलियों की मात्रा बढती जायेगी | क्या हम दवा से स्वस्थ हो रहे हैं या अस्वस्थ?
आपको जान कर आश्चर्य होगा कि लगभग ९०% बीमारियाँ मनो-शारीरिक है, अर्थात जिनका कारण मन में है और उनके लक्षण शरीर पर दिखते हैं | और हम मन को छोड़ कर, शरीर का इलाज करते हैं और मानते हैं कि हम स्वस्थ हो रहे हैं |
तो प्रश्न उठता है कि क्या यह संभव है कि हम मन पर ही इलाज कर सकें ताकि हम जड़ से ही बिमारी के कारण को सदा के लिए मिटा सकें |
जी हाँ, आज यह बिल्कुल संभव है| आज बहुत सी चिकित्सपद्धातियाँ हैं जो मन पर ही इलाज करती हैं और कोई दवाई भी नहीं लेनी पड़ती | अतः हम दवाइयों के दुश्परियाम से भी बच जाते हैं |और रोग के कारण को जड़ से समाप्त कर देते हैं| जीवन सफलता और आनंद की ओर अग्रसर होने लगता है| स्वास्थ्य तो हमारा ठीक रहता ही है, साथ में हज़ारो रूपय, जो हम दवाइयों में खर्चते हैं, वह भी बच जाते हैं |
इनकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे| अगर आपके कोई प्रश्न हैं तो आप संपर्क कर सकते हैं|
Dr. Pankaj Gupta